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जब गर्मी में पसीना बहा रहे थे लोग, तब मंत्री जी ने ओढ़ा दिया कंबल!

बेगूसराय में चढ़ा पारा 40 के पार, मंत्री ने बांटे 500 कंबल, फैसले पर उठे सवाल

बेगूसराय, बिहार:
जहाँ एक ओर बिहार के अधिकांश हिस्सों में भीषण गर्मी का प्रकोप जारी है, वहीं बेगूसराय में पारा 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुंच चुका है। चिलचिलाती धूप और लू से लोग बेहाल हैं। ऐसे में बेगूसराय में एक ऐसा वाकया सामने आया है, जिसने स्थानीय प्रशासन और राज्य सरकार की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

दरअसल, जिले के एक मंत्री ने हाल ही में एक सरकारी योजना के तहत 500 कंबलों का वितरण कराया। यह वितरण "गरीब और जरूरतमंदों की सहायता" के उद्देश्य से किया गया था, लेकिन जब लोगों को यह पता चला कि गर्मियों के इस मौसम में कंबल बांटे जा रहे हैं, तो इस फैसले की व्यापक आलोचना शुरू हो गई।

स्थानीय लोगों ने इसे "वास्तविक जरूरतों से disconnected योजना" बताया। कई लोगों का कहना था कि जब तापमान इतना ज्यादा है और लोग पंखे, कूलर और ठंडे पानी के लिए परेशान हैं, ऐसे समय में कंबल बांटना तर्कसंगत नहीं है।

सोशल मीडिया पर भी खूब मज़ाक उड़ाया गया। लोगों ने इस फैसले की आलोचना करते हुए मीम्स और व्यंग्यात्मक टिप्पणियों की बाढ़ ला दी। एक यूज़र ने लिखा, "लगता है मंत्री जी मौसम का ऐप अपडेट करना भूल गए हैं।" वहीं एक अन्य ने कटाक्ष किया, "शायद ये गर्मी से बचने का नया तरीका है – कंबल ओढ़ो, धूप से बचो!"

हालांकि, प्रशासनिक अधिकारियों ने सफाई देते हुए कहा कि यह योजना सर्दियों के समय में प्रस्तावित की गई थी, लेकिन बजट स्वीकृति और वितरण प्रक्रिया में देरी के कारण यह अब जाकर लागू हो पाई। एक अधिकारी ने बताया, "हमारी मंशा गलत नहीं थी। यह योजना दिसंबर में पारित हुई थी, लेकिन फंड और सामग्री वितरण में समय लग गया।"

विशेषज्ञों का मानना है कि योजनाओं को समय और आवश्यकता के अनुसार क्रियान्वित करना जरूरी है। यदि ऐसी योजनाओं की निगरानी और क्रियान्वयन में लचीलापन नहीं होगा, तो ऐसी घटनाएं दोहराई जाती रहेंगी।

विपक्ष ने भी इस मुद्दे को लेकर सरकार पर निशाना साधा है। एक विपक्षी नेता ने कहा, "सरकार जनता की समस्याओं को समझने में विफल हो रही है। यह सिर्फ कंबल नहीं, पूरी व्यवस्था की नाकामी का प्रतीक है।"

इस पूरे घटनाक्रम ने यह साफ कर दिया है कि ज़मीनी हकीकत से जुड़ाव और योजनाओं की समयबद्धता किसी भी शासन प्रणाली के लिए बेहद आवश्यक है। वरना अच्छे इरादे भी मज़ाक का पात्र बन सकते हैं।

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